Tuesday, March 19, 2024

Cheque bounce case process in hindi

चेक बाउंस (Cheque bounce) वित्तीय दुनिया में सबसे आम अपराधों में से एक है और किसी व्यक्ति के लिए गंभीर अपमान का कारण बन सकता है। यदि आपको किसी के द्वारा चेक दिया गया है और आप इसे नकद करने के लिए बैंक जाते हैं, तो यह महत्वपूर्ण है कि चेक जारी करने वाले के खाते में कम से कम उतना धन राशि हो जितना का चेक जारी किया गया है, क्योंकि उसने जो चेक जारी किया है, यदि उसके खाते में पर्याप्त धन नहीं है, तो बैंक चेक को अस्वीकृत कर देता है, इसे चेक बाउंस कहा जाता है। बैंक हमेशा चेक के बाउंस होते ही गैर-भुगतान के लिए आवश्यक कारणों के साथ चेक रिटर्न मेमो जारी करता है।

चेक क्या है?

Cheque एक निर्दिष्ट बैंकर पर निकाला गया एक विनिमय बिल है जो केवल आवेदक द्वारा मांग पर देय है। कानूनी अर्थों में, चेक जारी करने वाले व्यक्ति / संगठन को ‘drawer’ कहा जाता है और जिस व्यक्ति के पक्ष में चेक जारी किया गया है, उसे ‘drawee’ कहा जाता है।

चेक की आवश्यक विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  • चेक लिखित में होनी चाहिए
  • भुगतान जो करना है, उसे किसी पहचान वाले व्यक्ति / संगठन को निर्देशित किया जाना चाहिए
  • चेक मांग पर देय होना चाहिए
  • चेक एक विशिष्ट राशि के लिए होना चाहिए
  • Cheque पर जारीकर्ता के स्पष्ट हस्ताक्षर होने चाहिए

Cheque bounce होने के अलग-अलग कारण

चेक बाउंस होने के अनेकों कारण हो सकते है। चेक बाउंस होना एक तरह से अपमान करना माना जाता है।

  • जब चेक पर हस्ताक्षर और बैंक खाते के आधिकारिक दस्तावेजों जैसे पासबुक आदि पर हस्ताक्षर मेल नहीं खाते हैं।
  • जहां चेक पर ओवरराइटिंग है।
  • जब 3 महीने की समाप्ति (चेक की वैधता) के बाद चेक प्रस्तुत किया जाता है, यानी चेक समाप्त होने के बाद।
  • यदि बैंक खाता धारक द्वारा या बैंक द्वारा बैंक खाता बंद कर दिया गया है।
  • जब दाता के बैंक खाते में अपर्याप्त धनराशि हो।
  • यदि खाताधारक यानि दाता द्वारा भुगतान रोक दिया गया है।
  • जब चेक जारी करने वाली कंपनी की कोई मुहर नहीं है।
  • अगर चेक संयुक्त खाते से जारी किया गया है, जहां दोनों खाताधारकों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है, लेकिन चेक पर केवल एक ही खाताधारक का हस्ताक्षर हो।
  • जब दाता दिवालिया हो गया है।
  • यदि बैंक को चेक की प्रामाणिकता में संदेह है।

चेक बाउंस केस कैसे दर्ज करें?

भारत में Cheque bounce एक अपराध है, जो कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा-138 के तहत निर्धारित है। हालांकि, चेक बाउंस होने की स्थिति में पीड़ित पक्ष आरोपी के खिलाफ criminal के साथ civil suit दायर कर सकता है।

Cheque bounce मामला एक आपराधिक मामला है, जिसे आपराधिक न्यायालय मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा निष्पादित किया जाता है। लेनदेन के मामले दीवानी हैं, लेकिन चेक बाउंस के मामले को आपराधिक मामले में रखा गया है।

चेक बाउंस प्रकरण एक कानूनी नोटिस के माध्यम से शुरू किया जाता है। जब चेक बाउंस हो जाता है, तो एक अधिकृत वकील द्वारा Cheque bounce होने के 30 दिनों के भीतर, चेक जारी करने वाले व्यक्ति को एक कानूनी नोटिस भेजा जाता है, लीगल नोटिस स्पीड पोस्ट या कोरियर सर्विस के माध्यम से भी भेजा जा सकता है।

आपको नोटिस में लिखना होगा की आपने कब और किस कारण से यह चेक लिया था, और यह दोषी पार्टी का दायित्व है कि वह उस पर लिखे पैसे दे। इसके अलावा, अंत में आप दोषी पक्ष से चेक में लिखी गई राशि को नोटिस देने के 15 दिनों के भीतर वापस पा सकते हैं। और न केवल चेक में लिखी गई राशि, बल्कि कानूनी नोटिस भेजने में लगे खर्च भी प्राप्त कर सकते हैं।

Cheque bounce के मामले में, कानूनी नोटिस भेजने के बाद जिस दिन दोषी पार्टी को नोटिस मिलता है, या यदि किसी कारण से आपके पास वापस आ जाता है, तो उस दिन से अगले 15 दिनों के बीच, दोषी पार्टी कभी भी पैसे लौटा सकती है। यदि दोषी पक्ष 15 दिनों के भीतर आपका पैसा वापस नहीं करता है, तो Negotiable Instruments Act, 1881, की धारा 138 के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकते है, जिसके अनुसार अगले 30 दिनों के भीतर आप अदालत में दोषी पक्ष पर मुकदमा कर सकेंगे।

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केस के साथ फाइल किये जाने वाले आवश्यक डक्युमेंट्स

  • बाउंस चेक
  • चेक के साथ भरी जाने वाली स्लिप
  • रिटर्न मेमो (जिसमें चेक बाउंस होने का कारण लिखा होता है)
  • लीगल नोटिस की कॉपी
  • स्पीड पोस्ट की स्लिप
  • यदि दोषी पार्टी द्वारा आपको कोई नोटिस भेजा गया हो उसका कॉपी

चेक बाउंस केस कहा करें ?

जिस बैंक में चेक बाउंस हुआ है उस क्षेत्र के थाना में केस किया जा सकता है और यदि सिविल सूट दायर करना है तो उस क्षेत्र के न्यायिक मजिस्ट्रेट के कोर्ट में दायर कर सकते हैं।

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गवाह किसे बनाये 

जिस बैंक में चेक बाउंस हुआ है उस बैंक के मैनेजर को गवाह बना सकते हैं साथ ही किसी अन्य व्यक्ति को भी बना सकते हैं जो इस बात को जनता हो या गारंटर हो।

कोर्ट फ़ीस 

  1. एक लाख तक के राशि पर चेक में अंकित राशि का 5% कोर्ट फ़ीस लिया जाता है।
  2. एक लाख से पांच लाख तक के राशि पर चेक में अंकित राशि का 4% कोर्ट फ़ीस लिया जाता है।
  3. पांच लाख से अधिक राशि पर चेक में अंकित राशि का 3% कोर्ट फ़ीस लिया जाता है।

जब सभी दस्तावेज प्रस्तुत कर दिए जाते है तब न्यायलय द्वारा केस दर्ज कर लिया जाता है और वाद संख्या दिया जाता है। वाद दर्ज होने के बाद चेक जारी करने वाले व्यक्ति को कोर्ट में उपस्थित होने के लिए समन भेजा जाता है। आरोपी के उपस्थित नहीं होने पर पुनः समन जारी किया जाता है।

आपको बता दे की यह एक आपराधिक मामला होता है जो मजिस्ट्रेट के कोर्ट में सुना जाता है इसलिए कोर्ट द्वारा जमानती या गैर जमानती वारंट भी भेजा जा सकता है। यह एक समरी ट्रायल होता है, जिसे न्यायालय द्वारा शीघ्र निपटाने का प्रयास किया जाता है। इसमें बचाव पक्ष को बचाव के लिए साक्ष्य का उतना अवसर नहीं होता है, जैसा कि अवसर सेशन ट्रायल में होता है।

यह अपराध समझौता योग्य होता है जिसे कभी भी दोनों पक्षों द्वारा समझौता किया जा सकता है। यदि न्यायलय द्वारा दोषसिद्ध कर दिया जाता है तो 2 वर्ष तक की सज़ा दिया जा सकता है।

Himanshu Kumar
Himanshu Kumar
लखनऊ विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक। शोध कार्य में रुचि रखने वाले व्यक्ति के रूप में, मैं कानून के अस्पष्टीकृत हिस्से को पढ़ने और तलाशने में अधिक रुचि रखता हूं।
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