IPC Sec 124 (A) : जो भी शब्दों से, या तो बोले गए या लिखे गए, या संकेतों से, या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा, अन्यथा भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति नफरत या अवमानना, या उत्तेजना या असंतोष को उत्तेजित करने के प्रयासों को लाता है या प्रयास करता है। आजीवन कारावास के साथ दंडित किया जाएगा, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकता है, या कारावास के साथ जो तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है।
राजद्रोह का कानून आया कैसे
Sedition अर्थात राजद्रोह का कानून अंग्रेजो द्वारा 1860 में बनाया गया जो की भारतीय लोगों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध में बोलने अथवा लिखने पर लगाया जाता था। राजद्रोह के कानून को 1870 में Indian Penal Code में शामिल किया गया।
1870 में बने इस कानून का इस्तेमाल ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गाँधी पर ‘यंग इंडिया’ नाम से एक आर्टिकल लिखने पर किया था। यह आर्टिकल ब्रिटिश सर्कार के खिलाफ लिखा गया था। Sedition Law ब्रिटिश सरकार की देन है जिसे आजादी के बाद भारतीय संबिधान में सम्मिलित क्र लिया गया।
भारतीय दंड संहिता की धारा 124 A के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति सरकार के खिलाफ कुछ बोलता है या लिखता है अथवा कोई ऐसा संकेत देता है जिससे की देश की एकता अखंडता को खतरा हो तो उसपर देशद्रोह का मुकदमा दायर किया जायेगा।
यह अपराध संज्ञेय तथा गैर-जमानती अपराध है और सत्र न्यायालय द्वारा सुनवाई की जाती है तथा इसे चलने के लिए पुलिस को CrPC की धारा 196 के अंतर्गत केंद्र और राज्य सर्कार से मंजूरी लेनी होती है।
धारा 124 A के अंतर्गत दंड
भारतीय दंड संहिता की धरा 124 A के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति अपराधी पाया जाता है तो उसे आजीवन कारावास अथवा आजीवन कारावास तथा जुर्माना अथवा तीन वर्ष तक का कारावास अथवा तीन वर्ष तक का कारावास तथा जुरमाना अथवा जुर्माना से दंडित किया जा सकता है।
क्या है देशद्रोह :
IPC Sec 124 (A) के अनुसार
- अगर कोई भी व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है ऐसी सामग्री का समर्थन करता है,
- राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है,
- अपने लिखित या फिर मौखिक शब्दों, या फिर चिन्हों या फिर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर नफरत फैलाने या फिर असंतोष जाहिर करता है, तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सजा हो सकती है.
यह नियम 1860 में बनाया गया था और फिर 1870 में इसे आईपीसी में शामिल किया गया था।
Sedition Law ब्रिटिश सरकार द्वारा बनायी गई थी जिसे आजादी के बाद, भारतीय संविधान ने अपनाया। 1860 में बने इस कानून का इस्तेमाल ब्रिटिश सरकार ने बालगंगाधर तिलक के खिलाफ किया था।
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