Right to Information का गहरा संबंध मजबूत लोकतंत्र से है। मजबूत लोकतंत्र नागरिकों की अपेक्षा करता है कि नागरिकों को पता हो कि सरकार या प्रतिनिधित्वकर्ता क्या कर रहे हैं और कैसे कर रहे हैं? इसको जानने के लिए सूचना सबसे आवश्यक है। यही ‘सूचना के अधिकार’ की आवश्यकता का बड़ा कारण है।
Right to Information सुशासन से जुड़ी हुई है। सुशासन में सरकार से जवाबदेही, पारदर्शिता, भ्रष्टाचार रहित, जिम्मेदारी हो इसकी उम्मीद करते हैं। Right to Information (सूचना का अधिकार) वह उपकरण है जो सरकार में पारदर्शिता, जवाबदेही, तथा भ्रष्टाचार की जानकारी में उपयोगी है। यही कारण है पिछले कुछ वर्षों में कई बड़े घोटाले सूचना के अधिकार के कारण उजागर हुए हैं।
सूचना का अधिकार पर मुख्य वाद:
Case: राजनारायण बनाम भारत संघ 1975 इस वाद में कहा गया कि सूचना का अधिकार होना चाहिए।
Case: दिनेश त्रिवेदी बनाम भारत संघ तथा एस पी गुप्ता बनाम अडवोट्स ऑन रिकॉर्ड
इन वादों में उच्चतम न्यायालय में Right to Information के महत्व पर प्रकाश डाला।
Freedom of information on Act, 2002 इस संबंध में बनने वाला प्रथम कानून था परंतु यह पर्याप्त नहीं था इसी कारण 2005 में उसको समाप्त कर दिया गया तथा 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम बना।
सूचना का अर्थ क्या है?
सूचना को सूचना का Right to Information Act की धारा 2(f) में बताया गया कि सूचना का अधिकार किसी भी रुप में सामग्री अर्थात केवल दस्तावेज ही नहीं इसमें दस्तावेज ईमेल, राय, सिफारिश, प्रेस-रिलीज, सर्कुलर, आर्डर, लॉग बुक, संविदा, रिपोर्ट तथा कोई भी डाटा जो इलेक्ट्रॉनिक रूप में है, प्रत्येक वह चीज जो लोक प्राधिकारी द्वारा रखी जाती है वह सूचना है। ऐसी सूचना जो लोक प्राधिकारी द्वारा पद के संबंध में या पदभास में धारण की जाती है।
सूचना का अधिकार क्या है?
इसे सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 2 (i) में स्पष्ट किया गया है। सूचना का अधिकार का अर्थ लोक प्राधिकारी द्वारा accussable कर सकती है। इसमें कार्य, दस्तावेज, रिकॉर्ड भी सूचना का अधिकार है।
1. दस्तावेजों की स्थापित प्रतिलिपि भी इसके अंतर्गत आता है।
2. सामान के सत्यापित नमूने इसमें आते हैं।
3. इलेक्ट्रॉनिक तरीके से रखा गया कोई भी डाटा या जानकारी।
सूचना का अधिकार प्रयोग करने की प्रक्रिया-
धारा 6 आवेदन या निवेदन से संबंधित है-
वह व्यक्ति जो जानकारी प्राप्त करना चाहता है वह निवेदन लिखित रूप में कर सकता है। वह लोक सूचना अधिकारी (PIO) या असिस्टेंट सूचना अधिकारी (APIO) को निवेदन करेगा।
अधिनियम में कहा गया है कि 120 दिन में जितने लोग प्राधिकारी हैं वह अपने यहां PIO या APIO को नियुक्त करेंगे।
ऐसा निवेदन हिंदी या अंग्रेजी या आधिकारिक भाषा (क्षेत्र में) मांगी जाएगी।
अगर कोई व्यक्ति लिखित निवेदन करने में सक्षम नहीं है तो लोक सूचना अधिकारी के द्वारा या उस के आदेश के द्वारा अन्य किसी व्यक्ति द्वारा मौखिक सूचना को लिखित करने में मदद की जाएगी।
लोक सूचना अधिकारी जानकारियां मांगी गई सूचना को अति शीघ्र उपलब्ध कराने की कोशिश करेगा अधिकतम समय सीमा 30 दिन है।
जब सूचना 30 दिन के अंतर्गत प्रदान नहीं की जाती या सूचना देने से इंकार कर देता है तो प्रथम अपील करने का प्रावधान है।
प्रथम अपील, लोक सूचना अधिकारी से ज्येष्ठ अधिकारी के समक्ष किया जाएगा। प्रत्येक लोक प्राधिकारी ना केवल लोक सूचना पदाधिकारी बल्कि प्रथम अपीलीय अधिकारी भी घोषित करेगा।
निम्न परिस्थितियों में अपील कर सकते हैं-
- 30 दिन के अंदर सूचना नहीं दी गयी।
- अगर सूचना गलत, अपर्याप्त, अस्पष्ट है तो अपील कर सकता है।
- अन्य किसी कारण से सूचना से संतुष्ट नहीं है।
- अगर निवेदन अस्वीकार कर दिया गया तथा जिस आधार पर स्वीकार नहीं की गई वह उससे संतुष्ट नहीं है।
अपील निवेदन के अस्वीकार करने की दिनांक या सूचना देने के समय की विहित अवधि के बाद 30 दिन तक की जा रही है।
यह 30 दिन की समयसीमा के बाद ही अपीलीय अधिकारी अपील सुन सकता है। 30 दिन की अवधि 45 दिन तक कुछ परिस्थितियों में बढ़ाई जा सकती है।
अगर विहित समय सीमा के अधीन जानकारी नहीं दी गई या देने से मना कर दिया गया। इन मामलों में द्वितीय अपील सूचना आएगा यह की जाएगी दो तरह के सूचना आयोग हैं-
1. केंद्रीय सूचना आयोग।
2. राज्य सूचना आयोग।
द्वितीय अपील की समय सीमा 90 दिन है। प्रथम अपीलीय अधिकारी के समय सीमा की समाप्ति के दिन से 90 दिन होगी।
सूचना आयोग की कार्यवाही-
- सूचना आयोग कितने दिन में अपील निर्णित करेगा इसकी समय सीमा नहीं है।
- कमीशन युक्तियुक्त निरस्तीकरण या लोक प्राधिकारी द्वारा गलत सूचना देने पर जुर्माना लगा सकेगा। यह जुर्माना 250 प्रतिदिन की होगी (धारा 20)।
- यह जुर्माना केवल लोक सूचना अधिकारी से लिया जा सकता है। जिस की अधिकतम सीमा ₹25000 का जुर्माना लगाया जा सकता है।
- सूचना आयोग लोक सूचना अधिकार पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की संस्तुति कर सकता है।
- अपील को सुनते समय सूचना आयोग को CPC के अंतर्गत सिविल न्यायालय की शक्ति प्राप्त होती।
कौन सी जानकारी नहीं दी जाएगी (अधिनियम की धारा 8 के अनुसार)
- ऐसी जानकारी जिससे भारत की संप्रभुता तथा गरिमा प्रभावित हो।
- राज्य की सुरक्षा प्रभावित हो।
- वैज्ञानिक तथा आर्थिक हित प्रभावित हो।
- विदेशी राज्यों के संबंध प्रभावित हो।
- जिससे अपराध हो या समाज का माहौल बिगड़े।
- ऐसी सूचना जिसे देने से न्यायालय द्वारा मना किया हो या जिसे न्यायालय की अवमानना हो।
- ऐसी सूचना जिससे संसद या राज्य विधायन के विशेषाधिकार भंग हो।
- जब विदेशी राज्यों से विश्वास के आधार पर सूचना प्राप्त की गई हो।
- ऐसी सूचना जो किसी व्यक्ति के प्राण और उसकी शारीरिक सुरक्षा को खतरे में डाल दे।
- ऐसी सूचना जो किसी जांच या विचारण को प्रभावित करें।
- कैबिनेट पेपर्स, कैबिनेट मंत्रियों के मध्य का संवाद या बैठक की जानकारी।
- व्यक्तिगत जानकारी या ऐसी जानकारी जो ‘निजता के अधिकार’ का उल्लंघन करें।
जनता के अधिकतम हित के लिए न्यूनतम हित से समझौता किया जा सकता है। इस अधिनियम द्वारा official secret Act,1923 को अभिभावी कर दिया गया ।
यह भी जानें:
कृपया
सूचना के अधिकार 2005 अधिनियम की सभी धाराओ ( 2 से 8) का एक साथ जानकारी उपलब्ध कराए।
कृपया rti act 2005 के 2 f की जानकारी बताए कि इसमे क्या क्या नहीं बताया जा सकता