Constitution is supreme in democracy लोकतंत्र में जब प्रश्न सर्वोच्चता का हो तो विकल्प बहुत है। क्या जनता सर्वोच्च है? क्या सरकार सर्वोच्च है? क्या संविधान सर्वोच्च है? क्या उच्चतम न्यायालय सर्वोच्च है?
इस प्रश्न के उत्तर में अलग अलग मत हो सकते है। यह कहना भी अतिश्योक्ति नही होगा कि लोकतंत्र में जनता ही सर्वोच्च होती है। जैसे अब्राहम लिंकन ने कहा है कि ” लोकतंत्र जनता की, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन है “।
अथार्त लोकतंत्र में जनता की इच्छा ही सर्वोपरि है। क्योंकि लोकतंत्र में जनता द्वारा चुनें हुए प्रतिनिधि ही देश का शासन चलाते है तथा वें ही देश में विधि निर्माण, नीति निर्माण तथा देश निर्माण का काम करते है। लेकिन भारतीय लोकतंत्र में दृश्य थोड़ा अलग है ।
जब 26 नवंबर 1949 को जब संविधान निर्माताओं ने संविधान को अधिनियमित किया तब उन्होंने संविधान की उद्देशिका में “हम भारत के लोग ” शब्दों का प्रयोग किया जिससे लगता है कि भारतीय संविधान में भी जनता को ही सर्वोच्च माना है, लेकिन उद्देशिका को पूरा पढने के बाद हम पाते है कि भारत की जनता ने स्वंय ही संविधान को आत्मार्पित किया है, अथार्त स्वंय को संविधान से बाध्य किया है जो हमे उद्देशिका के अंतिम शब्दो ” अधिनियमित, अंगीकृत, आत्मार्पित करते है ” से देखने को मिलता है।
किसी भी अधिनियमिती की उद्देशिका से ही उसके निर्माताओं के आशय पता चलता है , इसी प्रकार भारतीय संविधान की उद्देशिका से ही उसके निर्माताओं के आशय पता चलता है, जिससे हम ये निष्कर्ष निकाल सकते है कि संविधान निर्माताओं का आशय भी भारत में संविधान को ही सर्वोच्च बनाना था जिससे भारत की प्रत्येक विधि प्रत्येक नीति और प्रत्येक संस्था शासित होती है तथा साथ ही संविधान निर्माताओं ने सर्वोच्च न्यायालय को संविधान का संरक्षक बनाया ताकि वह भारत में बनने वाली प्रत्येक विधि की संविधान की कसौटी पर परीक्षा करे तथा संविधान से असंगत पाए जाने पर उसे असंवेधानिक घोषित कर दे, जिसकी शक्ति संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 13 में सर्वोच्च न्यायालय को प्रदान की।
कहने का तात्पर्य बस इतना है कि भारत मे प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक संस्था, प्रत्येक प्रतिनिधि संविधान की आत्मा, संविधान के उपबंधों, तथा संविधान के आदर्शों से बाध्य है। लेकिन वर्तमान समय मे कुछ प्रश्न और उठते है की क्या हम संविधान के अनुरूप चल रहे है ? क्या हम संविधान के आदर्शों का पालन कर रहे है ?
इनका उत्तर नकारात्मक मिले तो विचलित होने वाली भी बात नही है क्योकि कई बार महत्वकांक्षाये आदर्शो ओर गुणो से ऊपर उठ जाती है। कई बार हम अपने लिये संविधान के उपबंधों को तोड मरोड़ कर समझ लेते है।
लेकिन इसे सकारात्मक बनाने का प्रयास भी हम सबको ही करना चाहिए। जबतक संविधान में आम जनता का विश्वास बना रहेगा तबतक ही लोकतंत्र बचा रहेगा ।
अथार्थ लोकतंत्र में संविधान ही सर्वोपरि है, सर्वोच्च है। इसका कोई और दूसरा विकल्प नही है।
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