सुप्रीम कोर्ट के जजों की सीनियरिटी कैसे तय की जाती है?
सुप्रीम कोर्ट को उच्चतम न्यायालय यानी कि सर्वोच्च न्यायालय भी कहा जाता है। इसकी स्थापना 26 जनवरी 1950 में की गई थी। सुप्रीम कोर्ट अपील करने का अंतिम न्यायालय होता है, उसका फैसला ही सर्वोपरि होता है। नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करना, राष्ट्रपति को परामर्श देना, संविधान की रक्षा करना, भारत की न्याय व्यवस्था को बनाए रखना सुप्रीम कोर्ट का काम होता है। संविधान का संरक्षण करना और भारत की न्याय व्यवस्था में सबसे ऊपर सुप्रीम कोर्ट आता है। संविधान के अनुसार इसमें एक मुख्य न्यायाधीश और अधिक से अधिक सात न्यायाधीश होते हैं।
संसद कानून द्वारा न्यायाधीशों की संख्या में परिवर्तन किए जा सकते हैं और मुख्य न्यायाधीश और दूसरे न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति दूसरे न्यायाधीशों की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश से परामर्श जरूर लेते हैं पर यह कैसे तय होता है कि सुप्रीम कोर्ट में जो सीनियर जज कौन बनेगा इसका फैसला कैसे किया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट में जब जजों की नियुक्ति होती है तभी तय हो जाती है कि सीनियर जज कौन होगा? सुप्रीम कोर्ट में जो व्यक्ति जज बनने के लिए पहले शपथ ले लेता है तो बाद में शपथ लेने वाले जज से वह सीनियर हो जाता है।
क्या आप यह जानते हैं कि किसी भी जज के अपॉइंटमेंट का वारंट सरकार के द्वारा जारी किया जाता है। जिसका अप्वाइंटमेंट पहले होता है वह पहले शपथ ले लेता है और सीनियर हो जाता है। मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर के अनुसार सीनियरिटी का फैसला करने के लिए कोई लिखित व्यवस्था नहीं की गई है। ऐसे में जिसका भी नाम जो कर्म के अनुसार से अपॉइंटमेंट लेटर में जारी होता है उसी क्रम के अनुसार से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जजों को शपथ भी दिला देते हैं।
सरकार कॉलेजियम को देखती है कि किसका नाम पहले जज बनने के लिए भेजा गया है। सरकार कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नाम को उसे वापस भी लौटा सकती है लेकिन अगर कॉलेजियम वापस से वही नाम भेज देता है तो सरकार को उस जस्टिस के नाम का अपॉइंटमेंट जारी करना पड़ता है। इस नियम का जिक्र मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर में किया गया है।
भारतीय संविधान का आर्टिकल 124 क्लोज 2 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति अपने पूरे अधिकारों के अंतर्गत करता है और इसके लिए वह आवश्यकता अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के दूसरे न्यायाधीशों से बात भी कर सकता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में भी वह सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में चाहे जितने भी न्यायाधीश से सलाह ले सकता है।
65 साल की आयु तक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश इस आर्टिकल के अनुसार अपने पद पर बने रहते हैं और कोई निश्चित उम्र या अनुभव इनकी नियुक्ति के लिए जरूरी नहीं होती। साथ ही चीफ जस्टिस के अलावा दूसरे सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति चीफ जस्टिस से सलाह ले सकते हैं।
अगर बात करें कि Collegium System किस तरह से सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति करता है तो जिस तरह से कॉलेजियम जजों की नियुक्ति के बारे में तय करता है वह सब्जेक्टिव मेथड होता है और यह सारा उसके सदस्यों के आपसी सलाह मशवरा पर और उनके विवेक पर निर्भर करता है कि कौन सा जज कितना सीनियर है। Collegium सिर्फ यही नहीं देखता बल्की मेरिट के मामले में भी किस जज को वरीयता दी जा सकती है यह भी देखता है। ऑल इंडिया हाई कोर्ट के जजो की लिस्ट में कौन सा जज कितना सीनियर है साथ में यह भी देखा जाता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के सभी राज्यों के जजों की सही प्रतिनिधित्व मिल रहा है या फिर नहीं मिल रहा है यह सारी बातें देखी जाती है।
Collegium system क्या होता है?
जिस व्यवस्था के तहत सुप्रीम कोर्ट में जजो की नियुक्तियां की जाती है उसे Collegium System कहा जाता है। कॉलेजियम वकील या जजों के नाम की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजता है इसी तरह केंद्र भी अपने द्वारा कुछ सुझाव के नाम को कॉलेजियम के पास भेजता है। केंद्र सरकार कॉलेजियम से आने वाले नामों की जांच करती है और उन पर होने वाली आपत्तियों की छानबीन करती है और रिपोर्ट को वापस कॉलेजियम के पास भेज देती है।
सरकार इसमें कुछ नाम अपनी ओर से भी सुझाव देती है। Collegium सरकार द्वारा सुझाए गए नए नामों और कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए नामों की आपत्तियों पर विचार करके फाइल को दोबारा से केंद्र सरकार के पास भेज देता है। इस तरह से नामों को एक दूसरे के पास भेजने का यह क्रम जारी रहता है। जब कॉलेजियम किसी वकील या फिर जज का नाम केंद्र सरकार के पास दोबारा से भेजता है तो केंद्र सरकार को उस नाम को स्वीकार्य करना ही पड़ता है लेकिन कब तक स्वीकार्य करना है इसकी कोई समय सीमा नहीं होती।
भारत में 24 हाईकोर्ट में 395 और सुप्रीम कोर्ट में जजों की 7 पोस्ट खाली पड़ी है। कोर्ट की अपॉइंटमेंट के लिए 146 पिछले 2 साल से सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच मंजूरी ना मिलने के कारण अटके हुए हैं। इन नामों में 36 नाम तो सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पास पेंडिंग पड़े हैं जबकि 110 नामों पर केंद्र सरकार की मंजूरी मिलना बाकी है।
कॉलेजियम सिस्टम का भारत के संविधान में कोई जिक्र नहीं है। यह सिस्टम 28 अक्टूबर 1998 को तीन जजों के मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के जरिए प्रभाव में आया था। कॉलेजियम सिस्टम ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के 4 सीनियर जजों का एक फोरम जो किस जजो की अपॉइंटमेंट और उनके ट्रांसफर की सिफारिश करता है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की अपॉइंटमेंट और उनके ट्रांसफर का फैसला भी कॉलेजियम ही करता है। इसके अलावा हाईकोर्ट के कौन से जज को प्रमोशन देकर सुप्रीम कोर्ट भेजना है इसका फैसला भी कॉलेजियम ही करता है।
यूपीए सरकार ने 15 अगस्त 2014 को कॉलेजियम सिस्टम की जगह N.J.A.C यानी की राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट के द्वारा 16 अक्टूबर 2015 को राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग यानी कि एनजेएसी कानून को असंवैधानिक करार दे दिया गया था।
NJAC का गठन 6 सदस्यों की सहायता से किया जाना था लेकिन इसका प्रमुख सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को बनाया जाना था। इसमें सुप्रीम कोर्ट के दो सीनियर जज, कानून मंत्री और अलग क्षेत्रों से जुड़े हुए दो जानी-मानी हस्तियों के सदस्य के रूप में शामिल करने की बात थी। NJAC में जिन दो हस्तियों को शामिल किए जाने की बात कही गई थी उनका चुनाव सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता या फिर विपक्ष का नेता नहीं होने की कंडीशन में लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल की नेता कमेटी करती। इसी पर सुप्रीम कोर्ट को सबसे ज्यादा आपत्ति थी।